Monday, November 06, 2006

'वो' फिरसे आया था

एक कोशिश कर रही हूं मराठी में लिखी कविता का भाषांतर करने की:( I hope this helps)

'वो' फिरसे आया था,
मेरे विश्वास को तोडने
आ गया था मुझे अपने मन को समझाना
भूला दिया है मैने उसे
और सिख भी लिया था
गम भुलाकर ह्सना.
'वो' फिरसे आया था,
मुझे बताने क्या होता है खिलखिलाना.

भावनाओंके सारे दरवाजे मैने
बंद किये थे
होठों को भी बडे
तालें लगायें थे
'वो' फिरसे आया था,
वो सारे दरवाजे खोलने
ना खुले तो उन्हे तोडने.

उसके और मेरे सारे दोस्तोंसे
हम दूर जा चुके थे
नयी जगह, नये लोगोंसे
नाते जोड लिये थे.
'वो' फिरसे आया था,
पुरानी यांदे जगाने,
कौन कहा रहता है
ये मुझे ही पुछने.

लेकीन 'वो' आया और मैने जाना
क्या खोया था,
मन को कितना भी रोका
उसे तुम्हारे पास ही आना था.
खूब सारी बातें की है
और ढेर सारी यादें ताजा की है
मन के दरवाजे खोल
दिलमें रोशनी भर ली है.

तुम फ़िर जा रहे हो
मेरे लिये एक बडा काम छोडके
फ़िरसे बांध बांधने है
फिरसे ताले लगाने है
मनकॊ फ़िरसे समझाना है
जब तक ना समझे तब तक बताना है
की अब तुम्हे भूल जाना है
फ़िरसे.........तुम्हारे बिना मुझे जीना है.

-विद्या.

5 comments:

Anonymous said...

Its very tough, I die every evening...

Anonymous said...

nice one..
aisa lagta hai dil se kavita likhi hai.. ek dard samne aa jata hai

Anonymous said...

Ye jo tere auzaar hai
Ye berukhi, ye khaamoshi
Bohat thez inke dhaar hai
Aur bade shauq se tumne
Mere dard ko taraasha hai

Anonymous said...

The beauty of a poem is in its original language. Its a nice try..but I liked the marathi one way better than the hindi version

Dk said...

Hmm good attempt :D hehe I amn not really good @ hindi & have not as of now.. went through your original Marathi poem. (I hope i will find your original 1)

bhaashaantr la hindit anuwaad mhntaat :)